क्या भारत का नक्शा कांग्रेस के शासन में छोटा होता चला गया ?
एक बार फिर उनका एक ट्वीट आया जिसमें उन्होंने लिखा कि कच्छ तीवु द्वीप के बारे में जानकर वह हैरान हैं उन्होंने एक आरटीआई के जवाब का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें यह जानकर आश्चर्य हो रहा है कि कांग्रेस सरकार के समय कच्छ तीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था, इसमें आश्चर्य की क्या बात थी? वह 10 साल से सरकार में हैं सरकार से जुड़े बहुत सारे कागजात हैं अगर सब कुछ उनके साथ है, तो 10 साल बाद, चुनाव से ठीक पहले, उन्हें पता चला कि भारत ने कच्छ तीवु द्वीप के मामले में श्रीलंका के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उन्हें 10 साल तक पता नहीं चला।
जबकि 2013 में बाकायदा एक और आरटीआई थी जिस आरटीआई का जवाब भारत सरकार से ही गया था और उसमें कच्छ तीवु द्वीप के बारे में ना केवल सारी डिटेल्स दी हुई हैं बल्कि जो समझौता भारत और श्रीलंका के बीच में श्रीमती इंदिरा गांधी के रहते हुए हुआ था उस समझौते की भी कॉपी लगाई गई थी और उनको पता ही नहीं था, चुनाव के समय याद आ गया खैर यह आरोप बहुत पुराना है कि कांग्रेस जमीन लुटाती रही है कांग्रेस के समय जो भारत का नक्शा था वह छोटा होता चला गया और यह सब बातें लगातार सोशल मीडिया में की जाती है।
अब लोगों के पास टाइम ही नहीं है कि जाएं इंटरनेट खंगाले इतिहास खंगाले और देखें कि किसने कितनी जमीन जोड़ी और किसने कितनी जमीन खोई।तो अब देखा जाए कि कितनी जमीन कांग्रेस के जमाने में गई है कितनी जमीन भारतीय जनता पार्टी के जमाने में गई है जरा हिसाब किताब गणित क्लियर कर दिया जाए।तो जो मैंने पाया उसकी शुरुआत में एक अलग से आंकड़े से कर रहा हूं।
जब आजादी मिली 15 अगस्त 1947 को तो भारत का जो टोटल क्षेत्रफल था एरिया था वोह था 29 27613 वर्ग किलोमीटर(square kilometer) यानी यह भारत का पूरा एरिया था और बगल में है पाकिस्तान, पाकिस्तान का एरिया कितना था 1034 783 स्क्वायर किलोमीटर यानी आप निकालेंगे तो रफली जो पाकिस्तान का क्षेत्रफल था वह भारत के क्षेत्रफल का 1/3 लगभग आपको बैठेगा 10 लाख के आसपास उनकी थी और 30 लाख के आसपास अपना क्षेत्रफल था तो 1/3 के आसपास बैठेगा।
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अब जरा आज की डेट में देख ले कि आज हमारे पास कितना क्षेत्रफल है और पाकिस्तान के पास कितना क्षेत्रफल है, तो हम पाते हैं कि 2927 613 किमी स्क्वायर (square kilometer) से बढ़ के हमारा जो क्षेत्रफल है वो 32806 33 किमी स्क्वायर हो गया है यानी हमारे क्षेत्रफल में 353020 स्क्वायर किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है।353020 स्क्वायर किलोमीटर हमारा जो क्षेत्रफल है वो बढ़ गया है हमारा एरिया 1947 में जैसा देश हमको मिला था उससे आज ज्यादा है।
जबकि पाकिस्तान के बारे में आप देखते हैं वहां का एरिया कम हो गया है यानी जहां भारत का एरिया 12.06 प्रतिशत बढ़ा है वहां उनका एरिया 4.77 प्रतिशत घट गया है, तो पहली बात तो यह मानना ही बेवकूफी है कि आजादी के बाद हमारी जमीन कम हुई है आजादी के बाद पाकिस्तान की जमीन जरूर कम हुई है और कैसे कम हुई है मैं बताऊंगा।
भारत की जमीन बढ़ी है और लगातार बढ़ी है अब अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के समय देख लेते हैं कि किसने जमीन लुटाई है और कौन जमीन लेके आया है जब जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त 1947 को इस देश के प्रधानमंत्री बने आजादी के बाद तो जैसा मैंने बताया आपको भारत का जो एरिया था वह 29 27613 किमी स्क्वैर था नक्शा आप देख सकतें है।
भारत के नक्शे में जम्मू और कश्मीर नहीं था 15 अगस्त को जम्मू और कश्मीर एक आजाद देश के रूप में अलग हुआ था वह हमारे साथ जुड़ा नहीं था, गुजरात में जूनागढ़ है वह भी हमसे नहीं जुड़ा था, त्रावणकोर जो आज केरला का बड़ा इलाका है वह हमसे नहीं जुड़ा था, गोवा हमसे नहीं जुड़ा था, दमन और दीव हमसे नहीं जुड़ा था और पांडिचेरी भी हमसे नहीं जुड़ा था। जम्मू और कश्मीर में आप जानते हैं डोंगरा डायनसिटी थे। उसके विलय के बारे में सब जानते हैं।
जूनागढ़ के बारे में आप जानते हैं कि जूनागढ़ के जो प्रधानमंत्री थे उस समय वो बेनजीर भुट्टो के दादा थे। त्रावणकोर के बारे में आप जानते हैं कि त्रावणकोर के राजा एकदम भी तैयार नहीं थे भारत के साथ मिलने के लिए, उन्होंने अपनी आजादी घोषित कर दी थी और जब उन्होंने अपनी आजादी घोषित की तो विनायक दामोदर सावरकर ने उनको तुरंत बधाई प्रेषित की थी जबकि उसी समय उन्होंने पाकिस्तान में अपना राजदूत भेजा था, भारत को नहीं भेजा था, यानी कि वह पाकिस्तान से से रिश्ता बनाना चाहते थे। त्रावणकोर गोवा और दमन दीव के ऊपर आप जानते हैं पुर्तगाल का शासन था और पांडिचेरी जो था वो फ्रांस के अधिकार में था।
जूनागढ़ के मामले में जूनागढ़ के नवाब और जूनागढ़ के जो दीवान थे वह बेनजीर भुट्टो के दादा थे वह पूरी तरह से पाकिस्तान में मिलना चाहते थे और पाकिस्तान के साथ उन्होंने समझौता भी कर लिया था उसके बाद जूनागढ़ को कैसे घेरा गया उसकी सप्लाई कैसे रोकी गई और फाइनली जूनागढ़ में रेफरेंडम कराया गया जिसमें सिर्फ 90 वोट पाकिस्तान के पक्ष में गए और इस तरह से अपनी होशियारी से बिना एक बूंद खून बहाए जूनागढ़ को हिंदुस्तान में शामिल कराया।
पंडित जवाहरलाल नेहरू हैदराबाद में इतने लकी नहीं थे हैदराबाद में सेना भेजनी पड़ी वहां खून भी बहा वहां काफी हिंसा हुई लेकिन फाइनली हैदराबाद भी भारत का हिस्सा बना तो यह तीन राज्य जम्मू और कश्मीर, जूनागढ़ जो कि अब गुजरात का हिस्सा है और हैदराबाद यह तीन राज्य तो सीधे-सीधे जवाहरलाल नेहरू के समय भारत की जमीन में जुड़े थे भारत की एरिया इनसे बढ़ी।
त्रावणकोर के साथ क्या हुआ, त्रावणकोर के जो राजा थे और दीवान थे वो बिल्कुल नहीं चाहते थे कि वो हिंदुस्तान के साथ मिले उन्होंने भी अपनी आजादी घोषित कर दी थी और पाकिस्तान तथा दूसरे मुल्कों में अपने राजदूत भेजना शुरू कर दिया था।
त्रावणकोर के अंदर कांग्रेस ने क्या किया :
कांग्रेस का सिद्धांत था कि जहाँ निजाम होते थे या इस तरह के जो रियासत राजा रजवाड़े होते थे वहां कांग्रेस अपना संगठन नहीं बनाती थी लेकिन नेहरू जी ने एक नया संगठन बनाया था और वह कांग्रेस का संगठन इन रजवाड़ों में ही काम करता था वो संगठन इतना मजबूत था कि त्रावणकोर में आंदोलन शुरू हुआ और उस आंदोलन के चलते मजबूर होकर त्रावणकोर को भारत के साथ संधि करनी पड़ी और इस तरह से त्रावणकोर भी भारत का हिस्सा बना तो यह तो वो इलाके थे जो राजे रजवाड़ों के इलाके थे जिन पर नेहरू और पटेल जी ने बहुत होशियारी के साथ डील करके हिंदुस्तान में उनको शामिल कराया।
अब आते हैं उन इलाकों पर जो हिंदुस्तान का हिस्सा थे ही नहीं क्योंकि ये अंग्रेजी साम्राज्य में नहीं थे पहला हिस्सा था पांडिचेरी का, पांडिचेरी के ऊपर फ्रांस का कजा था नेहरू जी ने युद्ध को टालते हुए फ्रांस से समझौता किया फ्रांस से बातचीत की और 16 फरवरी 1962 को पांडिचेरी भारत का हिस्सा बना।दूसरा जो इलाका था गोवा दमन और दीव का इन जगहों पर पुर्तगाल का कब्जा था फ्रांस तो बड़े प्यार से मान गया था और समझौते के द्वारा वह हमको मिल गया था लेकिन पुर्तगाल इतनी आसानी से मानने वाला नहीं था।
प्रॉब्लम यह थी कि पुर्तगाल वेस्टर्न कंट्री थी नाटो का मेंबर था, अगर पुर्तगाल की टेरिटरी पर हम हमला करते हमारे लिए दिक्कत हो जाती पश्चिम जगत जो है वह हमारे खिलाफ हो जाता यूएन में केस हमारे खिलाफ हो जाता तो गोवा के अंदर भी मूवमेंट चलाया गया वहां के लोकल लोगों में जिसमें हिंदू मुसलमान ईसाई सब शामिल थे जो कांग्रेस से जुड़े हुए थे उन लोगों ने लगातार आंदोलन चलाया इधर से नेहरू जी लगातार प्रेशर बनाते रहे।
अक्सर कहा जाता है कि नेहरू जी चाहते तो 1947 में ही गोवा भारत का हिस्सा बन जाता भैया गोवा का मामला बहुत टिपिकल मामला था पुर्तगाल समझौता करने को तैयार नहीं था छोड़ने को तैयार नहीं था और युद्ध का मतलब यह होता कि फिर मामला यूनाइटेड नेशंस में जाता पश्चिमी देश इसमें इन्वॉल्व होते इसलिए अंदर से प्रेशर बनाया गया और फाइनली 19 दिसंबर 1961 को गोवा हमारा हिस्सा बना तथा दमन और दीव जो गोवा के अंडर में ही था वो भी हमारा हिस्सा बना यानी गोवा, दमन और दीव।
दमन और दीव बहुत बाद में जाकर यूनियन टेरिटरी बना है पहले वह गोवा के साथ ही था तो गोवा दमन और दीव इन इलाकों को जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी होशियारी के साथ मिलाया यानी आप देखते हैं कि 1962 तक जम्मू कश्मीर, जूनागढ़, त्रावणकोर हैदराबाद, गोवा, पांडिचेरी, एवं दमन और दीव इन सारे इलाकों को जवाहरलाल नेहरू ने अपने भारत के साथ मिलाया और भारत की जमीन बढ़ाई।
जाहिर तौर पर आप कहेंगे और कहना भी चाहिए कि इसी बीच में 21 नवंबर 1962 को चीन के युद्ध में अक्साई चिन का एरिया जिस पर चीन अपना दावा करता था और हम अपना दावा करते थे वो चीन के पास चला गया यानी ये जमीन उन्होंने गवाई, लेकिन कुल मिलाजुला के अगर आप देखेंगे तो 147 448 स्क्वायर किलोमीटर की जमीन भारत में जोड़ी, इन सारे इलाकों को भारत में जोड़ने का श्रेय पंडित जवाहरलाल नेहरू और पटेल जी को जाता है।
इसके बाद जो जमीनें हमारे साथ जुड़ी वो जुड़ी इंदिरा गांधी के जमाने में इसमें दो बहुत इंपॉर्टेंट जमीनें हैं सिक्किम के बारे में आप लोग जानते हैं सिक्किम आजाद देश था भारत का प्रोटेक्टरेट था भारत उसकी रक्षा करता था जैसे भूटान बहुत दिनों तक भारत का प्रोटेक्टरेट रहा यानी उसकी अपनी सेना नहीं है भारत की सेना उसकी रक्षा करती थी लेकिन सिक्किम जो था वह भारत का हिस्सा नहीं बना था।
16 मई 1975 को सिक्किम भारत का हिस्सा बनता है यह भी कहानी बहुत इंटरेस्टिंग है सिक्किम की जो रानी थी होप क्रुक वो अमेरिका की रहने वाली थी और वह किसी भी हालत में भारत के साथ विलय के लिए राजी नहीं थी चाइना अपनी निगाह गड़ाए हुए था सिक्किम पे और वह चाहता था कि सिक्किम के ऊपर हमला करके उसको अपने इलाके में मिला ले नेशनल इंटरनेशनल प्रेशर्स को झेलते हुए इंदिरा गांधी ने सिक्किम को भारत में मिलाया।
वह भारत का पूरी तरह से राज्य बन गया और वह ऐसा बना कि कम से कम उत्तर पूर्व का एक राज्य ऐसा है सिक्किम जहां भारत विरोधी भावनाएं बिल्कुल भी नहीं है और अगर सिक्किम का इलाका आप देखेंगे तो वह 76 किमी स्क्वायर का है।
इससे भी इंटरेस्टिंग केस है सियाचिन का अपनी मौत से कुछ दिन पहले ऑपरेशन मेघदूत चलाकर कितनी होशियारी से भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पाकिस्तान से छीना था जो युद्ध के लिहाज से बेहद इम्पोर्टेंट ग्लेशियर है जिसे 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन का इलाका 2553 स्क्वा किमी का इंदिरा गांधी भारत के साथ मिलाती हैं यानी इंदिरा गांधी के जमाने में 9649 स्क्वायर किलोमीटर का एरिया भारत के साथ जुड़ता है लेकिन इससे बड़ा एक कंट्रीब्यूशन है।
मैंने आपको बताया पाकिस्तान का एरिया कम होने का मामला तो पाकिस्तान का एरिया सबसे ज्यादा कम तब हुआ जब इंदिरा गांधी ने 1972 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग होने में मदद की आप जानते हैं कि बांग्लादेश में भाषा को लेकर आंदोलन था बांग्लादेश के जो सबसे बड़े नेता थे शेख मुजीबुर रहमान उनकी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें आई थी लेकिन पाकिस्तान के जो लोग थे पाकिस्तान के जो नेता थे वह उनको प्रधानमंत्री चुनने को तैयार नहीं थे।
उनको गिरफ्तार कर लिया गया फिर उनके सब साथी भागकर बंगाल में आ गए वहां पर इंदिरा गांधी ने उनको सपोर्ट किया उनकी गवर्नमेंट बनी और उसके बाद जो बांग्लादेश मुक्त युद्ध हुआ उसमें हमारे देश की सेना का क्या रोल था यह बताने की जरूरत नहीं है। यह भी बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसा तब था जब अमेरिका धमकी दे रहा था कि हम सातवां बेड़ा भेज देंगे।
उधर चीन की धमकी थी कि आपने यहां आक्रमण किया तो हम उधर से आक्रमण कर देंगे उसमें कैसे एयर स्पेस को पाकिस्तान के लिए ब्लॉक किया कैसे अमेरिका गई और निक्सन को उसी के खेल में हराया और कैसे फाइनली बांग्लादेश को अलग किया वह अपने आप में इतिहास है वो शानदार डिटेल है। इंदिरा गांधी के जमाने में एक तो जमीन जुड़ी और वहीं पाकिस्तान का एक बड़ा हिस्सा जिसको पहले पूर्वी पाकिस्तान कहते थे वह पाकिस्तान से अलग हुआ।
हमारे देश की जमीन गई कब हमारे देश की जमीन गई वाजपेई जी के जमाने में जब कारगिल वार हुआ कारगिल वार के बारे में हम जानते हैं कि कैसे सरकार को पता ही नहीं चला कि ऊंचाई के सारे पोजीशंस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया। उसके बाद युद्ध शुरू हुआ चूंकि वह ऊपर थे हम नीचे थे तो बहुत भयानक युद्ध हुआ हमारे बहुत सारे युवा ऑफिसर शहीद हुए।
उसके बाद कारगिल को बचाया जा सका लेकिन कारगिल में एक पॉइंट है 5353 जो 10 स्क्वायर किलोमीटर का ही है लेकिन स्ट्रेटेजिक तरीके से बहुत इंपॉर्टेंट है उस पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया अब आर्मी और ऑफिशियल सोर्सेस से कहा जाता है कि यह कारगिल वार के काफी पहले कब्जा हो गया था। दरअसल कारगिल वार के समय ही यह 10 किमी स्क्वायर का बेहद स्ट्रेटेजिक पॉइंट कारगिल 5353 वाजपेई जी के जमाने में हमारे हाथ से गया है।
लेकिन मोदी जी के जमाने में जो गलवान घाटी का मामला हुआ जिसको लेकर हमारे आर्मी ऑफिसर्स ने भी बहुत सारी बातें की और अब सोनम वांगचुक लगातार यह बात कह रहे हैं वो लगातार कह रहे हैं कि चाइना ने हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया है और एक रिकॉर्ड एक अनुमान यह बताता है कि 4067 स्क्वायर किलोमीटर हमारी जमीन पर चाइना कब्जा कर चुका है तो इतनी जमीन हमारे हाथ से जा चुकी है और दुखद यह है कि इस पर कहीं कोई बयान भी नहीं है।
चाइना नई-नई घोषणाएं करता है अभी उसने अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों का नदियों का पहाड़ों का नाम बदल दिया अरुणांचल का भी नाम बदल दिया उसके बाद जयशंकर जी का बयान जरूर आया कि नाम बदलने से कुछ तय नहीं होता अरुणांचल हमारा था हमारा है। लेकिन चीन लगातार जमीनें हमारी कब्जा कर रहा है आगे बढ़ रहा है गलवान घाटी में जिस तरह की चीज हुई थी वह सवाल तो उठता है।