भारत के बंटवारे की कहानी, 4 नक्शों की जुबानी।
इसलिए कि इंसान झूठ बोलते है। इतिहास में कभी कभी सफ़द झूठे लिखे जा सकते हैं। पर नक्शे अपनी कहानी ईमानदारी से बताते है। नक्शो को पढ़ने के पहले कुछ सत्य समझ लीजिए। भारत में बंटवारा, महज राजनैतिक मांग से नही हो गया।
ये 1946-47 के खूनी दंगों का नतीजा था। दंगा क्या है – डायरेक्ट एक्शन, हमला-प्रतिहमला, नफरत- प्रतिनफरत, घृणा- प्रतिघृणा, औऱ फिर साहचर्य से इनकार !
पर नारो से दंगे सफल नही होते। दंगे सफल होने की इजाजत प्रशासन देता है।
आज भी हर दंगाई यही कहता है- तीन दिन के लिए पुलिस हटा दो, और फिर बता देंगे। दंगा प्रेमी सरकारें, तीन दिन के लिए पुलिस हटा भी लेती है।
पहला नक्शा 1934, प्रशासनिक सुधारो के साथ……
अब तक भारतीयों को शासन में भागीदारी दी जाने लगी। जनरल इलेक्शन 1934 में भी होते हैं, सेंट्रल असेम्बली बनती है।
याद रखिये, इन इलेक्शंस में सार्वत्रिक वयस्क मताधिकार नही था।
सीमित उच्च वर्ग ही वोट देता या चुनाव लड़ते थे। कोई 4% लोग जो पढ़े लिखे, आयकर दाता, राय बहादुर और खान बहादुर थे।
पहला नक्शा कहता है कि कांग्रेस देश भर में जीती। ये गांधी की कांग्रेस है, नेहरू सुभाष की हैं, जो बंगाल और पंजाब में कमजोर रही।
1940 में पाकिस्तान का प्रस्ताव पास होता है, मुसलमानो का राष्ट्र किन इलाको में होगा, अभी ये तय नही हुआ बस इतना तय हुआ, कि इस भारत की धरती पर दो राष्ट्र होंगे।
पाकिस्तान-मुस्लिम राष्ट्र और दूसरा-हिन्दू राष्ट्र।
जिसकी रूपरेखा 1937 में ही दे दी थी। ये हिन्दू रजवाड़ों की एक फेडरेशन होगी, नेपाल नरेश जिसके महाराजाधिराज हों।
(भाषण नेट पर उपलब्ध है।)
तो दो राष्ट्र की गूंज है। दोनो के दो पैरोकार कौन है ? हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग।
1937 में असेम्बली इलेक्शन होते हैं, 11 राज्य में कांग्रेस जीतती है, जहां उसकी लीडरशिप है, उन राज्यो में एकता और सहअस्तित्व की बातें हैं। पर जहां हारी, वहां के समाज में रूलिंग पार्टियां, टूट का प्रोपगंडा कर रही है।
सुभाष के बंगाल में कॉंग्रेस पिछड़ती है। फजलुल हक मुस्लिम लीग, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दलित गुटों के साथ सरकार बना लेते हैं। पंजाब मे भी कांग्रेस पीछे है, क्षेत्रीय दल और यूनियनिस्ट पार्टी हावी है। यह दूसरा नक्शा है।
अब तीसरा नक्शा, 1945 का चुनाव।
नफरती बंगाल में आठ साल से सत्ता में हैं। हर दिन आग को हवा दी जा रही है, दो राष्ट्र के गीत गाये जा रहें हैं। इस प्रोपगंडे में नई पीढ़ी भी जोश से जुड़ी है। परिणाम स्वरूप मुस्लिम लीग, बिना गठबन्धन, खुद के बूते सत्ता में आई। अब सोहरावर्दी की सरकार है। पाकिस्तान की तामीरी का सपना पाल रही है। पंजाब, सिंध, खैबर में वो जीती है।
जिन्ना को यहीं से ताकत मिलती है। जो प्रदेश उनकी मुट्ठी में हैं, उन्हें पाकिस्तान देश बनाने की मांग करते हैं। दबाव बनाने को दंगे शुरू होने देते है डायरेक्ट एक्शन..…
चौथा नक्शा तीन हरे पैच देखिये। कांग्रेस द्वारा खोए जा चुके प्रदेश। यहां दंगाइयों की हाथ ही पुलिस है, प्रशासन है। दंगे का नंगा खेल खुलकर चलता है और सीधा ब्लैकमेल- पाकिस्तान को मंजूरी या अनवरत दंगे..
दंगे रोकने गांधी दौड़ रहे, नेहरू दौड़ रहे। संघी गायब। या शामिल थे, प्रतिहिंसा में, आप बेहतर जानते है।
विभाजन का दोष आज गांधी, नेहरू को देने वाले वही बेशर्म हैं, जिन्होंने जिन्ना संग मलाई खाई। गठबन्धन करके मुस्लिम लीग को सत्ता में लाये, उसका प्रभाव बढाया।
1943 में सिंध में जिस सरकार ने पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव पारित किया, उसमें 3 मंत्री हिन्दू महासभा के थे। संविधान सभा में हिन्दू महासभा को पूरे देश से बस 01 सीट मिलती है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो फजलूल हक के वित्तमंत्री, खाद्य मंत्री रहे, ठसक के साथ नेहरू सरकार जॉइन करते हैं। यही नेहरू की भूल थी। बंटवारे का प्रस्ताव जिस कैबिनेट मे पास होता है, उसमे मुखर्जी भी शामिल है, बंटवारे पर सहमत है।
वही आगे चलकर जनसंघ बनाते हैं। अखण्ड भारत की बात करते हैं। नक्शा चीखता है- जिस भूमि ने गांधी की सोच को नकारा, उस इलाके के हिन्दू मुस्लिम या जातीय दल (पंजाब) को तरजीह दी, वह पाकिस्तान हुआ। मैं आम मुसलमान को दोष नही देता। उन्हें वोटिंग राइट ही नही थे। बिगाड़ और नकार तो धनवानों, रसूखदारों और उच्च शिक्षित मूर्खो ने किया। आज की ही तरह..
जिन राज्यों के एलीट, पढ़े लिखों ने, इनकमटैक्स पेयर्स ने, तब गांधी और नेहरू की सोच को नकारा.. वहां पाकिस्तान बना।
वे फिर दो राष्ट्र बना रहे हैं। अब गांधी नही, नेहरू भी नही। दारोमदार आप पर है। सोचिये..
इन रसूखदार, पैसे वाले, वाचाल, पढ़े लिखे “रायबहादुर” दंगाइयों से बचिए। ये नक्शे देखिए। जो गवाही देता है।